Padmini Ekadashi 2023 Vrat Katka: पद्मिनी एकादशी का व्रत आज 29 जुलाई दिन शनिवार को है. मलमास या अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पद्मिनी एकादशी कहलाती है. यह पद्मिनी एकादशी हर 3 साल में एक बार आती है क्योंकि मलमास भी हर तीन वर्ष पर आता है. पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है. उसे यश और वैकुंठ प्राप्त होता है. पद्मिनी एकादशी की पूजा के समय आपको इसकी व्रत कथा को जरूर पढ़ना चाहिए. इससे व्रत का महत्व पता चलेगा. व्रत कथा पढ़े बिना व्रत कैसे पूर्ण होगा? जानते हैं पद्मिनी एकादशी व्रत कथा के बारे में.
पद्मिनी एकादशी पर इन पेड़ों की पूजा है खास (Padmini Ekadashi Upay)
- पीपल पूजा - अधिक मास के शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी पर पीपल की पूजा का भी खास महत्व है. पीपल में विष्णु जी का वास होता है. एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद पीपल में तिल, कच्चा दूध, गंगाजल चढ़ाएं. मान्यता है इस उपाय से पितरों को तृप्ति मिलती है और परिवार तरक्की करता है.
- आंवला पूजा - आंवला की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई है. पौराणिक कथा के अनुसार एकादशी के दिन जो लोग आंवले के वृक्ष के नीचे दीपक लगाकर विष्णु जी का स्मरण करते हैं उन्हें समस्त सांसारिक सुख और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- तुलसी पूजा - पद्मिनी एकादशी पर तुलसी को लाल चुनरी चढ़ाएं और 5 घी के दीपक लगाकर विष्णु जी के मंत्रों का जाप करें. मान्यता है इससे लक्ष्मी जी बेहद प्रसन्न होती है और घर धन-धान्य से भर जाता है.
पद्मिनी एकादशी व्रत के नियम (Padmini Ekadashi Vrat Niyam)
- पद्मिनी एकादशी के दिन भूल से भी तुलसी न तोड़े, इस दिन किसी भी वृक्ष के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए.
- एकादशी व्रत का फल तभी मिलता है जब व्रती मन और तन दोनों की शुद्धता बनाए रखे, इसलिए इस दिन क्रोध, लालच, अहंकार का त्याग करें.
- ब्रह्मचर्य का पालन करें. नाखून-बाल न काटें.
- एकादशी पर देर तक नहीं सोना चाहिए, इससे आपका भाग्य भी देर से ही जागता है.
पद्मिनी एकादशी 2023 मुहूर्त (Padmini Ekadashi 2023 Muhurat)
पंचांग के अनुसार अधिक मास के शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी तिथि 28 जुलाई 2023 को दोपहर 02.51 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 29 जुलाई 2023 को दोपहर 01.05 मिनट पर खत्म होगी.
- पूजा का समय - सुबह 07.22 - सुबह 09.04
- पद्मिनी एकादशी व्रत पारण - सुबह 05.41 - सुबह 08.24 (30 जुलाई 2023)
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेता युग में एक पराक्रमी राजा कृतवीर्य था. इस राजा की कई रानियां थी लेकिन किसी भी रानी से राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई. ऐसे में संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख सुविधाएं होने के बावजूद दुखी रहते थे. एक बार संतान प्राप्ति के लिए तपस्या का विचार किया और फिर अपनी सभी रानियों के साथ तपस्या के लिए चल पड़े. हजारों वर्ष तक तपस्या करते रहने के बाद राजा के शरीर में सिर्फ हड्डियां ही शेष रह गयी थी लेकिन उनकी तपस्या सफल न हो सकी. तब उनकी एक रानी ने देवी अनुसूया से उपाय पूछा. देवी ने उन्हें मल मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा.
अनुसूया ने रानी को पद्मिनी व्रत का पूरा विधि-विधान भी बताया. रानी ने तब देवी अनुसूया के द्वारा बताए गए विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा. व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा. रानी ने भगवान से कहा है प्रभु, आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान दीजिए. भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा. राजा ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो और तीनों लोकों में आदरणीय हो और आपके अतिरिक्त कोई अन्य उसे पराजित न कर सके. इसके बाद भगवान ने तथास्तु कहा और चले गए. कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया. कालान्तर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिसने रावण को भी बंदी बना लिया था. कहते हैं कि यह कथा सबसे पहले भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सुनाकर इसके माहात्म्य से अवगत करवाया था.
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